Monday, July 27, 2015

दिल्लगी

दिल्लगी

मरहम जख्म पर लगाना आपको खूब आता है
हम इसी इंतज़ार में  घायल हुए बैठे हैं

नज़र भर देख लो तो फूल खिल जाये चमन मे
हम उस नूर की  चाहत मे पंखुरियाँ  समेटे  हैं


चिरागो की रौशनी का सबब है ये आँखे, जो देखे दीवाना हो जाए,
हम एक  झलक पाने को उनकी, इस शमा के परवाने हुए बैठे  हैं .

तेरे आने के पैगाम देती हवाएँ , यूँ मदमस्त बहे जाती है
हम तो उनके संग झूमता एक, बरसाती बादल बने बैठे हैं

करिश्मा कुदरत का हो, या फरिश्ता खुदा का
ये सवाल हम कब से जेहेन मे लिए बैठे हैं

तेरी बातों की महक थी या, इन अदाओं की खुशबू,
हम उस दिन से अपनी सासों को  कैद किये बैठे हैं

न आएगी मौत भी तुझे देखे बिना, इन ज़ख़्मों कि किसे फ़िक्र है,
हम तेरे उस आखरी दीदार के लिए,जान हथेली पर लिए बैठे हैं.



शुक्रिया दोस्तों!

अर्पित


Garmiyon Ka ekdin!




Subah ki meethi Neend Se Khud uth jana
Papa k Saath muh andhere ghoom k  aana
Tod na pata tha neem Ka Datun
Umar mai bahut chota tha shayad

Mummy ne Kaha daud kAr sabji lana
Malin se 50 paise kam karana
Ab na nazar aata is pakki sadak par
Yahan mere Ghar Ka kaccha rasta tha shayad


Din mai doston k saath daudte kadam
Barasti lu mai khelne Ka dum
Dadi ke saath  Mandir ja Kar aana
Kulfi k paison Ka bahana tha shayad

Sham ko gali mai tehal jana
Us khidki par yun tak taki lagana
Kabhi nazar na mili Us chand se
Par wo Bhi Chup k dekhta tha shayad


Raat ko Kacchi si chat par sona...
Haath k bune kapas Ka bichona
Taron Ka jhurmut Yaad Nahi aata
Mai gehri Neend mai soya tha shayad


 Is raat mai beeti yadon ne ghera
Ret Mai banta Dadi Ka chehra
Chhone laga to gum Hua,

Ye bachpan ek Sapna tha shayad


Shukriya Doston!

Appy

Thursday, February 19, 2015

समतल सा सच ||


शीशों  को  चुन  आशियाना  बनाया  हमने 
चलो  इसी बहाने किसी  को  पत्थर  तो  न  मारेंगे 
इन  हंसी  की दीवारों  के  साये  मे 
हम  कुछ  ग़मों  को  छुपा  लेंगे  


इस  मीठी नींद  मे  चलते-चलते  
सपनो  को  हम  हक़ीक़त  जानेंगे 
जब  रूबरू  होंगे  कड़वे  सच  से 
फिर  हम  उसे  सपना  मानेंगे 


घूमते  है  हम  तराज़ू  हाथ  मे  लेके 
हर  रूह  को  हम  उसमे  तोल  डालेंगे .
अपने  मतलब  के  वजन  रख  रख  कर 
काटें जहाँ  चाहे  घुमा  लेंगे 


दुआओं  की  ताक़त  से  चलती  खुशियां 
कब  तक  हम  इन्हे  अपना  किया  मानेंगे 
जब  खो  जाएँगी  समुन्दर  की  गहराई  मे 
हम  फिर  किनारे  की  खाक  छानेंगे


रेट  की  तरह  फिसलती  ये  ज़िन्दगी  
इन  हसरतों  के  पीछे  कब  तक  भागेंगे 
एक  तोला  भर  हंसी  किसी  चेहरे  पर  ला दे 
बस  आरज़ू  दिल  मे  यही  पालेंगे 


ना कभी  शुरू  न  खत्म  ये  सफर  
इस  रास्ते के  पड़ावों को क्यों  मंज़िल  मानेंगे 
इन  गीले  शिकवों  से  दूर  निकल  कहीं  

एक  समतल  सा  जहाँ  बना  लेंगे