शीशों को चुन आशियाना बनाया हमने
चलो इसी बहाने किसी को पत्थर तो न मारेंगे
इन हंसी की दीवारों के साये मे
हम कुछ ग़मों को छुपा लेंगे
इस मीठी नींद मे चलते-चलते
सपनो को हम हक़ीक़त जानेंगे
जब रूबरू होंगे कड़वे सच से
फिर हम उसे सपना मानेंगे
घूमते है हम तराज़ू हाथ मे लेके
हर रूह को हम उसमे तोल डालेंगे .
अपने मतलब के वजन रख रख कर
काटें जहाँ चाहे घुमा लेंगे
दुआओं की ताक़त से चलती खुशियां
कब तक हम इन्हे अपना किया मानेंगे
जब खो जाएँगी समुन्दर की गहराई मे
हम फिर किनारे की खाक छानेंगे
रेट की तरह फिसलती ये ज़िन्दगी
इन हसरतों के पीछे कब तक भागेंगे
एक तोला भर हंसी किसी चेहरे पर ला दे
बस आरज़ू दिल मे यही पालेंगे
ना कभी शुरू न खत्म ये सफर
इस रास्ते के पड़ावों को क्यों मंज़िल मानेंगे
इन गीले शिकवों से दूर निकल कहीं
एक समतल सा जहाँ बना लेंगे
Wah! Wah! Wah! Kavi Arpit Mehta ji ki rachna bohot achhi hai.
ReplyDeleteSuper duper awesome. Whenever you write, you weave words flawlessly :)...looking forward to more!
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