Monday, July 27, 2015

दिल्लगी

दिल्लगी

मरहम जख्म पर लगाना आपको खूब आता है
हम इसी इंतज़ार में  घायल हुए बैठे हैं

नज़र भर देख लो तो फूल खिल जाये चमन मे
हम उस नूर की  चाहत मे पंखुरियाँ  समेटे  हैं


चिरागो की रौशनी का सबब है ये आँखे, जो देखे दीवाना हो जाए,
हम एक  झलक पाने को उनकी, इस शमा के परवाने हुए बैठे  हैं .

तेरे आने के पैगाम देती हवाएँ , यूँ मदमस्त बहे जाती है
हम तो उनके संग झूमता एक, बरसाती बादल बने बैठे हैं

करिश्मा कुदरत का हो, या फरिश्ता खुदा का
ये सवाल हम कब से जेहेन मे लिए बैठे हैं

तेरी बातों की महक थी या, इन अदाओं की खुशबू,
हम उस दिन से अपनी सासों को  कैद किये बैठे हैं

न आएगी मौत भी तुझे देखे बिना, इन ज़ख़्मों कि किसे फ़िक्र है,
हम तेरे उस आखरी दीदार के लिए,जान हथेली पर लिए बैठे हैं.



शुक्रिया दोस्तों!

अर्पित


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